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काशी निवास के समय शंकराचार्य के जीवन को सैद्धान्तिक से व्यावहारिक मोड़ देनी वाली दो प्रमुख प्रेरक प्रसंग –
प्रेरक प्रसंग 1
इन शब्दों को सुनकर ही श्री शंकर का
ब्रह्मज्ञान सच्चे व्यावहारिक लेवल पर पहुँच गया और उन्होंने मन ही मन उस चाण्डाल
को एक गुरु समझ कर के प्रणाम किया | तत्कालीन कई लोगों ने इस घटना को सुनकर यही
कहा कि भगवन विश्वनाथ चाण्डाल के रूप में आचार्य शंकर को उपदेश देने आए थे |
प्रेरक प्रसंग आत्मविश्वास | inspiring story in hindi
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प्रेरक प्रसंग 2
बहुत समय बीत जाने पर एक दिन आचार्य
शंकर सुबह गंगा स्नान कर लौट रहे थे कि सहसा घाट की ओर आ रहे चाण्डाल से को छू
गये| स्पर्श होते ही शंकराचार्य कुपित हो उठे और चाण्डाल पर अपवित्र करने का दोष
लगाकर भला- बुरा कहने लगे | चाण्डाल हँसा और बोला,- “ महाराज! सन्यास लेकर संत तो
बन गए और वेद शास्त्र पढ़कर पंडित भी| किन्तु आपका तुच्छ देहाभिमान अभी भी न गया |
इस प्रकार की भेद बुद्धि रहते हुए भी आप अपने आपको पूर्ण संत मान रहे है | यह उचित
तो नहीं लगता| सबके शरीर में एक आत्मा का निवास है, इस सत्य को प्रतीत किए बिना
आपका सन्यास अपूर्ण है, आडम्बर है|”
चाण्डाल की बातों ने शंकराचार्य की आँखे खोल
दी | उन्होंने अपनी अपूर्णता को स्वीकार किया और पूर्णता को प्राप्त करन, कर्तव्य
पथ पर चल पड़े| अध्यात्म के सत्य स्वरूप को हृदयंगम कर अटक से कटक तक और कन्याकुमारी
से कश्मीर तक सम्पूर्ण भारत की यात्रा कर जनता के, जनमानस में धर्म सम्बन्धी
भ्रांतियों को दूर किया तथा सम्पूर्ण भारत में वैदिक धर्म की पुनस्थापना की|
संकलित
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