भगत सिंह की जीवनी bhagat singh biography in hindi

bhagat Singh history in hindi भगत सिंह जयंती 28 सितम्बर


हमारे देश पर लगभग 200 वर्ष तक अंग्रेजो ने शासन किया था और उन्होंने इन 200 वर्ष में india को लुटने का ही काम किया। उनका उद्देश्य केवल लूटना ही था वे यहाँ के लोगो पर बहुत अत्याचार करते थे। देश को उनके क्रूर शासन से मुक्ति दिलाने के लिए बहुत से लोगो ने अपनी जान की कुर्बानियां दी थी।

Bhagat Singh biography 


  देश की आजादी के लिए freedom fighters हँसते हँसते फांसी पर झूल गए थे । उन्ही आजादी के दीवानों मे से एक थे भगत सिंह जिन्होंने केवल 23 वर्ष की आयु में अपने वतन के लिए मौत को गले लगा लिया।

 ऐसे महान क्रांतिकारी का जीवन हमारे लिए प्रेरणादायी और अनुकरण करने योग्य है इसलिए आज हम gyandrashta.com पर bhagat singh ki jiwani post kar rahe है।



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 bhagat singh's early life and education  प्रारम्भिक जीवन


      भगत सिंह का जन्म पंजाब के जिला लायलपुर में बंगा नामक गाँव में 27 सितम्बर, 1907 को हुआ था। जो की अब पाकिस्तान में है। bhagat singh के पिता सरदार किशन सिंह और भगत सिंह के चाचा अजित सिंह व स्वर्ण सिंह अंग्रेजो के विरोधी थे और इस वजह से उन्हें जेल भी जाना पड़ा। जिस दिन भगत सिंह का जन्म हुआ उसी दिन उनके पिता और चाचा जेल से रिहा होकर आये इसलिए भगत सिंह के दादा ने उनका नाम अच्छे भाग्य वाला मानकर भगत सिंह रखा।


  भगत सिंह को देशभक्ति की शिक्षा उनके परिवार के वातावरण से ही मिली थी उनका परिवार स्वतंत्रता प्रेमी था इसलिए भगत सिंह में भी स्वतन्त्रता और देशभक्ति कूट कूट कर भरी हुई थी।

भगत सिंह ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा अपने गाँव में ही प्राप्त की थी| भगतसिंह ने आगे की पढाई के लिए 1916-17 में लाहौर के D.A.V स्कूल में प्रवेश लिया ।


13 अप्रैल, 1919 में अमृतसर के जलियाँवाला बाग नामक स्थान पर लोगो rolet act के विरोध में शांतिपूर्ण तरीके से विरोध करते लोगो पर जनरल डायर ने गोलियां चलवा दी जिससे हजारो बेबस लोगो की मौत हो गई और इस घटना ने भगत सिंह को अंदर तक झकझोर दिया और उन्होंने उसी समय अंगेजो से इसका बदला लेने की और उन्हें भारत से भागने की शपथ ले ली।


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भगत सिंह का स्वतंत्रता में योगदान

   महात्मा गाँधी ने 1920 में असहयोग आन्दोलन की घोषणा की तो भगत सिंह भी इस आन्दोलन में कूद पड़े| भगत सिंह ने अपनी पढाई भी छोड़ दी और आजादी के लिए संघर्ष करने लगे। लेकिन चोरा-चोरी कांड के बाद गांधीजी ने आन्दोलन वापिस ले लिया जिससे भगत सिंह बहुत आहत हुए।


जब लाला लाजपत राय ने लाहौर में नेशनल कोलेज कीस्थापना की तो भगत सिंह ने भी उसमे प्रवेश ले लिया|   national college में भगत सिंह की मुलाकात सुखदेव, यशपाल, झंडा सिंह और तीर्थ राम जैसे युवा क्रांतिकारियों से हुई और एक ही विचार धारा के हिने के कारण जल्द ही सभी गहरे दोस्त बन गए।


सभी दोस्त दिन रात देश की आजादी के लिए कार्य करते थे और वे भारत से अंग्रेजो को भगाने का plan बनाते थे। जब 1928 में साइमन कमीशन भारत आया तो इसके विरोध के लिए जुलुस निकाला गया जिसका नेतृत्व लाला लाजपत राय कर रहे थे। लोगो का भरी विरोध देखकर सहायक अधीक्षक साण्डर्स ने लोगो पर लाठीचार्ज का आदेश दे दिया । इस लाठीचार्ज में कई लोग घायल हुए और लाला लाजपत राय की पिट पिट कर हत्या कर दी गई। लालाजी की इस हत्या ने युवा खून में उबाल ला दिया और भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु और चंद्रशेखर आजाद ने मिलकर लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए साण्डर्स को मारने का प्लान बनाया।

भगत सिंह का प्लान काम कर गया और उन्होंने साण्डर्स की गोली मारकर हत्या कर दी और वहाँ से फरार हो गये।


जब केन्द्रीय असेम्बली में public sefti bill और डिस्प्यूट बिल पेश किए जाने की खबर हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन को हुई ( जिसके भगत सिंह भी सदस्य थे) तो उन्होंने इसका विरोध करने का निश्चय किया। भगत सिंह और सभी ने मिलकर प्लान बनाया की असेम्बली में बम फेंका जाए लेकिन बम ऐसी जगह फेंकने का निर्णय किया गया जहाँ पर कोई भी न हो।


असेम्बली में बम फेंकने की जिम्मेदारी भगत सिंह ने ली और उनके साथ बटुकेश्वर दत्त थे। इन दोनों ने असेम्बली की खाली जगह पर 2 बम फेंके ओए "इंकलाब जिंदाबाद" के नारे लगाते हुए वाही पर खड़े रहे और अपनी गिरफ्तारी दी।


भगत सिंह के जेल जाने के बाद एनी क्रांतिकारियों को भी पुलिस ने पकड लिया और अंग्रेजी अदालत ने 7 अक्टुम्बर, 1930 को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फाँसी की सजा सुना दी। 1931 में इस फैसले के खिलाफ प्रिवी काउन्सिल में अपील की गई लेकिन 10 जनवरी, 1931 को इस अपील को खारिज कर दिया गया।
   

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भगत सिंह की मृत्यु


    भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फाँसी की सजा सुनाए जाने पर देश भर में विरोध की लहर उठने लगी। तीनों क्रांतिकारियों को फाँसी देने का दिन 24 मार्च, 1931 तय किया था लेकिन लोगो के विरोध को देखते हुए अंग्रेजो ने 23 मार्च, 1931 को रात के 7 बजकर 33 मिनट पर उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया।

भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु हँसते हँसते और फाँसी के फंदे को होठो दे चूम कर अपनी जन देश के खातर कुर्बान कर दी।


भगत सिंह और उनके साथियों को जब फांसी पर चढाने के लिए लाया जा रहा था तब भी वे बड़े शान से गा रहे थे -

      दिल से निकलेगी न मरकर भी वतन की उल्फत

         मेरी मिट्टी से भी खुशबू-ए-वतन आएगी|


अंग्रेजों ने भगत सिंह को फांसी पर चढ़ा कर उनकी तो हत्या कर दी लेकिन उनके विचारो ने देश के युवाओ में आजादी के लिए एक नया जोश भर दिया और आज भी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु युवा दिलो की धडकन है

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1 comment:

  1. बहुत ही बढ़िया जानकरी पढने को मिला

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