वक्त की आँधी का कैसा कहर है
रावलो के राज मे पड़ गया खलाल है।
जिस धरती को समझा माँ सींचा अपने रक्त से
उस धरती का भूपति कोई ओर है।
चित्रकूट , चिड़ियाटूँक आज सुनसान है
याद कर रहे राजपुतो की शान है ।
महाराणा जो झुका नही अडिग रहा खड़ा वही
जिसके सामने बादशाह फकीर हुआ
उस राणा की धरती का हो रहा अपमान है ।
एक जयमल महान था राठौड़ो की शान था
मेड़ता का अभिमान था धर्म की वो ढाल था ।
एक पृथ्वी सुरवीर था
शब्द भेदी बाण से देता दुश्मनो की चीर था।
जो प्रेरणा की मिसाल था चन्द्रसेन उसका नाम था
घाव सहन कर लड सकता वो सांगा महान था।
आज हम कमजोर है पर बाजुओ मे जोर है
इस घायल शेर को छेड रहा संसार है ।
भूल उनकी है यही की वक्त भरता घाव सभी
नया सवेरा तब आएगा जब परचम राजपुताना का लहरायेगा ।
प्रद्युम्न सिंह 'भम्सा'
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