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राजस्थान रोडवेज की सवारीयों से ठसाठस भरी बस मंद गति से अपने गंतव्य की ओर बढ रही थी । मै बस मे बैठा बस को ओवरटेक करती मोटरो को देखकर सरकारी बस की कछुआ चाल को कोसने लगा ।
बस मे भीड़ ज्यादा होने से बस मे बैठे यात्रीयो की आवाज कोलाहल मे तब्दील हो रही थी और बाबा आदम के समय की बस के पुर्जो की आवाज आग मे घी का काम कर रही थी ।
मैने आसपास हो रही गतिविधियो से ध्यान हटा कर WhatsApp पर दोस्तो के साथ chat करने मे व्यस्त हो गया । तभी पास की सीट पर बैठे एक अधेड उम्र का आदमी मोबाइल और युवा वर्ग पर ज्ञान झाड़ने लगा । लेकिन मेरी बिल्कुल भी रूचि नही थी फिर भी उम्र का लिहाज कर हाँ ...हाँ . कर रहा था । मेरी हरकत से वो व्यक्ति समझ गया और अपना राग अलापना बंद कर दिया । तब जाकर कानो को थोड़ा आराम मिला ।
एक स्टेशन पर बस रूकी तो सवारियाँ उतरने लगी ।मैने भी सरसरी नजर बैग पर डाली और यथावत जगह पाकर वापिस अपने काम मे व्यस्त हो गया ।
लोग बस मे चढ रहे थे । लेकिन मै अपनी ही धुन मे बिजी था । लेकिन ठक - ठक की आवाज सुनी तो सिर उठाकर देखा तो मै सहम सा गया ।
देखा कि बैसाखी के सहारे एक पैर से अपाहिज आदमी बस की सीढ़ीयो पर चढ रहा था । उसका दायाँ पैर घुटने के ऊपर से कटा हुआ था शायद किसी हादसे की वजह से ऐसा हुआ होगा ।
बस मे भीड़ होने की वजह से बैठने की तो क्या खड़े रहने की भी जगह नही थी । इसलिए वो अपाहिज व्यक्ति बस के दरवाज़े के पास लगे पोल को पकड कर खड़ा हो गया।
उसने एक आशाभरी नजर बस की सवारियो पर डाली शायद यही सोचकर कि कोई उसके दर्द को समझ कर उसे बैठने के लिए जगह दे ।
जहा वो अपाहिज खड़ा था मै उसी कि सामने वाली सीट पर बैठा था । उसको देखकर मेरे दिल ने कहा -" अरे सोच क्या रहा है खड़ा हो जा और इस को सीट दे दो " ।
मै अपने दिल की बात मानकर उठने हि वाला था कि दिमाग ने एक नया बाण छोड़ा -" अरे पागल मत बन; अभी सिरोही दूर है और यदि तु खड़ा हो गया तो फिर तुझे सीट नही मिलेगी । तुने कोई समाजसेवा का ठेका थोड़े ही ले रखा है ओर भी लोग है बस मे ।"
मेरे दिल और दिमाग मेरे वाक् युद्ध शुरू हो गया । और मेरे कलयुगी दिमाग ने दिल को हरा दिया ।
बस मे बैठे किसी भी व्यक्ति ने सीट देने की हिमाकत नही की । तभी चालक ने अचानक ब्रेक लगा दिया जिससे वो अपाहिज व्यक्ति गिरते गिरते रह गया ।
यह देख पास मे बैठी एक वृद्धा का ह्रदय पिघल गया और उसने कहा -" भाया थू अठै बैं पो "(भाई तु यहा बैठ जा )
और वो अपनी सीट से खड़ी हो गयी ।
अपाहिज व्यक्ति ने तुरंत कहा -" ना ना काकी थानै उबा कर बैठू मूं ऐडो ने हूँ " । ( बहन आपको खड़ा करके मै बैठ जाऊ ऐसा ( अपाहिज ) भी नही हूँ )
लेकिन उस वृद्धा ने जबरदस्ती उसको बैठा दिया और बस मै बैठे सारे युवा अपनी सीट पर ऐसे बैठे थे जैसे फेविकोल से चिपका दिए हो.लज्जा के मारे उनके सर झुके थे और मै भी अपराधबोध से ग्रसित हो कर मोबाइल की स्क्रीन को लॉक व ओपन करने लगा.
अगले स्टोप पर वह अपाहिज उतर गया लेकिन अपने पिछे एक बड़ा सवाल छोड गया " अपाहिज कौन ? "
आपको हमारा यह लेख कैसा लगा ? आप यदि वहा पर होते तो क्या करते? आपके हिसाब से अपाहिज कौन ?
आपको अपने विचार कमेंट बॉक्स मे रखे ।
True story by a true writer
ReplyDeleteधन्यवाद भम्सा
ReplyDeleteयह एक द्वन्द होता है जिससे पार निकल गये तो ज़िन्दगी आपकी ग़ुलाम बन जाती वरना आप ज़िन्दगी के इशारों पर नाचते है।
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