1. महत्त्व इस बात का नहीं कि और लोग क्या करते
है। महत्त्व इस बात का है की हम क्या करते है ।
श्री
चन्द्रप्रभु
2. व्यक्ति पर होने वाले संस्कार , उसके आसपास का
वातावरण, उसकी दृष्टि के सम्मुख रहने वाले आदर्श आदि सब कुछ समाज का ही ऋण है । उस
समाज के हेतु व्यक्ति को अपना जीवन समर्पित करना चाहिए ।
उमांकात केशव आप्टे
3. अपने लिये तो हर कोई मरता है, औरों की भलाई के
लिये मरने का सौभाग्य तो विरलों को ही मिलता है ।
श्री चन्द्रप्रभु
4. लोभ में असीम पाप भरा हुआ है । इस नीच लोभ ने
किसको अपने वश में नहीं किया है? उससे आविष्ट हो जाने पर श्रेष्ठ राजा भी कौनसा
बुरा कर्म नहीं कर सकता ? लोभी प्राणी पिता, माता, भाई, गुरु, एवं अपने
बन्धुबांधवो को भी मार डालता है। इस विषय में कुछ भी अन्यथा विचार नहीं किया जा
सकता है। वेदव्यास
5. हमारे जीवन मार्ग में अनेक आकर्षक प्रकाश हमें
अपनी राह से खींचने के लिये चमकेंगे, कर्तव्य मार्ग से विचलित करने का प्रयत्न
करेंगे, लेकिन हमारा यह कर्तव्य है की अपनी प्रगति की सुई को अपने वास्तविक लक्ष्य
के ध्रुव तारे की ओर से कभी टलने न दें ।
स्वेट मार्डेन
6. याद रखो कि न धन का मूल्य है, न नाम का , न
विद्या का, केवल चरित्र ही कठिनाई रूपी पत्थर की दीवारों में छेद कर सकता है
स्वामी विवेकानन्द
7. अपने आपको जैसा आप बनाना चाहते है, उसी का
मानसिक चित्र अपने सामने बनाकर रखिए, न की अपने सम्बन्ध में अपने डरो और शंकाओ का
चित्र। जो चित्र अपने सामने आप निरंतर रखेंगे वही विचारों के सहारे निर्मित हो
जाएगा, आप वैसे ही हो जांएगे।
जानकीशरण शर्मा
8. मनुष्य
बड़ा होता है बड़ो की सेवा करने से बड़ो की आज्ञा पालन करने से ।
चरणों में तथा हाथों में विशेष शक्ति होती है;
क्योकि उनमे रोम नहीं होते है । रोम होने से शक्ति कीलित हो जाती है । रोम न होने से
शक्ति सीधे आती है ।इसलिए बड़ो के चरण स्पर्श करने चाहिए ।
स्वामी रामसुखदासजी
9. अपने
को साधारण और दुसरे को विशेष समझने वाला सज्जन होता है ।
अपने को विशेष और दुसरे को साधारण , छोटा मानने
वाला दुर्जन होता है ।
स्वामी रामसुखदासजी
10. असंयम का एक क्षण – अपने आपको वश में न रख
पाने का एक पल कई बार जीवन भर के स्नेह को कटुता में परिवर्तित कर देता है और उससे
कई परिवार बंटकर बिखर जाते है ।
स्वेट मार्डन
11. बचने का कोई रस्तान्न खुला हो तो मनुष्य डटकर
संघर्ष करता है और उसके संकल्प में अटूट दृढ़ता आ जाती है । वह घोर कठिनाई व असहय
कष्ट को भी सहन करता है।
12 हमारी गलतिया हमे दिखने लगे, ऐसा प्रयास
निरंतर जारी रखे ।
13 लक्ष्मी को माँ मानकर सत्कर्म में लगाएगे तो
वह प्रसन्न होगी । यदि उपभोग की इच्छा से उसका दुरूपयोग करोगे तो वह लात मारेगी ।
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