राजा सगर ने एक बार अश्वमेघ यज्ञ किया । अश्वमेघ
यज्ञ के लिये जो घोडा छोड़ा था, उसे इन्द्र ने चुरा लिया । राजा सगर के पुत्र उस
घोड़े को तलाश करने निकले । घोड़े को तलाश करते हुए सगर पुत्र कपिल मुनि के आश्रम के
पास पहुंचे । सगरपुत्रो को कपिल मुनि के आश्रम के पास घोडा दिखाई दिया । उन्होंने
कपिल मुनि को ही चोर समझकर इसके लिये
तिरिस्कृत किया । कपिल मुनि तपस्वी और पराक्रमी थे । मुनि का तिरिस्कार करने के
कारण सगर पुत्र वही स्वत: जलकर भस्म हो गये ।
राजा सगर की दूसरी पत्नी से असमंजस नामक पुत्र
हुआ । असमंजस के अंशुमान नाम का पुत्र पैदा हुआ । अंशुमन अपने दादा की सेवा करता
था । अंशुमन अपने चाचाओ की खोज में निकला और खोज करता हुआ जब वह जा रहा था, तो उसे
कपिल मुनि मिले । अंशुमान ने ऋषि को प्रणाम किया और उनकी स्तुति की । भगवान कपिल
ने तब अंशुमान को बताया कि बेटा यह घोडा तुम्हारे पितामह का यज्ञ पशु है , इसे तुम
ले जाओ । उन्होंने अंशुमान को उसके चाचाओं के भस्म होने की बात भी बताई | मुनि ने
अंशुमान को उसके चाचाओं के उद्धार का उपाय भी बताया कि उनका उद्धार केवल गंगा जल
से ही हो सकता है । अंशुमान वहा से अपने पितामह राजा सगर के घोड़े को लेकर आया । राजा
सगर ने फिर अश्वमेघ यज्ञ पूरा किया ।
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अंशुमान ने अपने चाचाओं के उद्धार के लिये गंगाजी
को लाने के लिये बहुत तपस्या की , पर सफल नहीं हुए । अंशुमान के दिलीप नामके पुत्र
थे और दिलीप के पुत्र हुए भागीरथ । अंशुमान के पुत्र दिलीप ने भी गंगाजी को धरती
पर लाने के लिए कठोर तपस्या की । परन्तु वे भी सफल नहीं हुए । इसके बाद भागीरथ ने
घोर तपस्या की । भागीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर गंगाजी ने उससे वर मांगने को
कहा । भागीरथ ने कहा मातेश्वरी आप मृत्यु लोक में जीवो का कल्याण करने के लिये
धरती पर आएँ ।
गंगाजी ने कहा जब में धरती पर आऊ तो मेरा वेग धारण करने वाला भी कोई होना चाहिए । भागीरथ ने उत्तर दिया की भगवान शंकर आपका वेग धारण कर लेंगे । इसके बाद भागीरथ ने भगवान शंकर की तपस्या की और इसके लिये भगवान शंकर को प्रसन्न किया । भगवान शंकर ने गंगाजी को अपने सिर पर धारण किया । राजा भागीरथ आगे आगे चलते रहे और गंगाजी पीछे – पीछे । गंगासागर के संगम पर पहुंचकर गंगाजी ने राजा सगर के स्वत: जलकर भस्म हुए पुत्रों को अपने जल से पवित्र कर उनका उद्धार किया ।
गंगाजी ने कहा जब में धरती पर आऊ तो मेरा वेग धारण करने वाला भी कोई होना चाहिए । भागीरथ ने उत्तर दिया की भगवान शंकर आपका वेग धारण कर लेंगे । इसके बाद भागीरथ ने भगवान शंकर की तपस्या की और इसके लिये भगवान शंकर को प्रसन्न किया । भगवान शंकर ने गंगाजी को अपने सिर पर धारण किया । राजा भागीरथ आगे आगे चलते रहे और गंगाजी पीछे – पीछे । गंगासागर के संगम पर पहुंचकर गंगाजी ने राजा सगर के स्वत: जलकर भस्म हुए पुत्रों को अपने जल से पवित्र कर उनका उद्धार किया ।
गंगाजी के बारें में कहा भी गया है-
काया लाग्यो काट, सकलीगर सुधरै नहीं ।
निर्मल
होय शरीर , तो भेट्यां भागीरथी ।।
आपको हमारा यह गंगाजी पर लेख कैसा लगा कमेन्ट करके जरूर बताय ।
फिर भी...आप वो करे
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