राजस्थानी लोक साहित्य में नीतिगत तत्वों की बात करे तो पता चलता है कि राजस्थानी लोक साहित्य समृद्ध है तथा प्रत्येक मनुष्य के लिये नैतिक आचार संहिता का कार्य करता है ।
राजस्थानी साहित्य में यश प्राप्ति
को सदा से सर्वश्रेष्ठ माना है। इस यश के सामने भौतिक सुख और सम्पदा सदा से गौण है
और यह तभी संभव है जब इस प्रकार की सीख मिले –
मूरत सुन कीरत बड़ी , बिन
पांखा उड़ जाय।
मूरत तो मिट जावसी, कीरत कठे
न जाय ।।
मनुष्य जीवन के लिये लाभाकारी और फलदायी बातों की सीख लोक काव्य में
पग पग पर मिलती है और इन बातो में जीवन का निचोड़ होता है -
बलता तो दीपक भला, वलता
भला विघन्न।
गलता तो वैरी भला, वलता भला सुदिन्न ।।
विद्या वापरती भली,
भरतो भलो निवाण।
पंडित तो कथतो भलो ,
स्रोता भलो सुजाण ।।
चन्दण री चिमठी भली,
गाडों भलो न काठ ।
चातर तो एक ही भलो,
मूरख भला न साठ ।।
नित को भलो न बरसनो ,
नित की भली न धूप ।
नित को भलो न बोलणो ,
नित की भली न चूप ।।
“ राजस्थानी वात “ ,
राजस्थानी लोक साहित्य का महत्त्वपूर्ण अंग है, इन बातों को मांडने (कहने) से पहले
कुछ छोगे कहे जाने की परम्परा है । इन छोगों में नीतिगत सीख भरपूर होती है और ये
होते भी बड़े सरस है –
बात सांची भली, पोथी बांची भली।
देह साजी भली, बहु
लाजी भली ।।
लुवां बाजी भली,
नौबत गाजी भली ।
मौत मौड़ी भली, मनसा
थोड़ी भली ।।
घाव पाटी भली, भाख
फाटी भली ।
मैथी फाकी भली, साख
पाकी भली ।।
पंथ गाड़ी भली, भैंस पाडी भली ।।
इन्ही छोगों में
संसार के खोटे कामों से भी अवगत कराने के लिये नसीहत दी जाती है कि –
भोजाई रो बोल खोटो, रुपिया रो रोल खोटो ।
बानिया रो आसो खोटो,
जेल रो बासो खोटो ।
अकलियै रो लाटो
खोटो, बामण रो आटो खोटो ।।
अवड बिचै छाली खोटी,
खेत बिचै बाली खोटी ।।
बाबोजी रै चेली
खोटी, घर आली तो बोली खोटी ।।
लोक जीवन से जुड़े
फलदायी व दुखदायी पहलुओ का प्रगटीकरण भी इन्ही छोगों में होता है –
सियाले रो मेह भून्ड़ो , तिरिया बिना गेह भून्ड़ो ।
ऊगोनो तो खेत
भून्ड़ो, परनारी सु नेह भून्ड़ो ।।
भगतन सु हेत भून्ड़ो,
उधारी बौपार भून्ड़ो।
विधवा रो बनाव भून्ड़ो, साधू वालो हेत भून्ड़ो ।।
मौसर री रीत भुंडी,
दासी सु प्रीत भुंडी ।
पाड़ोसी सु राड़ भुंडी,
काँटा री तो बाड़ भुंडी ।।
डुंगर री चड़ाई
भुंडी, सांसी सु लड़ाई भुंडी ।
आकड़े री राख भुंडी,
दिवालिये री साख भुंडी ।।
खीचड़ में लादो भून्ड़ो, घरे हिलियो खोदो भून्ड़ो ।।
आज all world में
पर्यावरण को लेकर बड़ी चिंता व्यक्त की जाती है लेकिन यहाँ का लोक तो सदैव से कहता
आया है –
आक न अहलो काटिये, नीम न घालो घाव ।
जो रोहीड़ो काटसी, दरगा
होसी न्याव ।।
पीपल काटे हल खड़े,
धन कन्या को खाय ।
सींव तोड़ खेती करे,
जड़ा मूल सु जाय ।।
राजस्थानी लोक
साहित्य का नीति तत्व जीवन के गहरे अनुभवों का निचोड़ है और इसमें कष्ट सहन करके भी
मानवता को न छोड़ने की प्रेरणा दी जाती है ।
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आपको हमारी यह सीख
से भरी हुई post कैसी लगी , comment करके जरुर बताये ।
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