Hindi Story Suicide
Best Hindi Story'पिछे हटो कोई इस लाइन से आगे नही आएगा ' एक पुलिसवाले ने भीड को हटाते हुए कहा।
लेकिन लोग कहा मानने वाले थे । वहाँ उपस्थित प्रत्येक व्यक्ति के मन मे एक ही सवाल था कि आखिर इसने ऐसा किया क्यों?
भीड बार बार सफेद कपडे से ढके शरीर को देखने की कोशिश कर रही थी । देखने वालो की आँखो मे जिज्ञासा, भय, और संशय साफ झलक रहा था आखिर हो भी क्यों न जब जवान लडके की लाश आँखो के सामने हो ।
वहाँ का पुरा दृश्य दिल दहलाने वाला था, चारो ओर बिखरा खून, उपस्थित लोगो की भयावह कोलाहल कमजोर दिल के व्यक्ति के लिए तो यह सब देखना और सुनना मुश्किल था। प्रत्येक व्यक्ति अपनी अपनी राय दे रहा था कोई कह रहा था -"प्यार मे पागल होगा " । कोई कह रहा था -" प्यार मे दिल टूट गया होगा " । जितने मुंह उतनी बातें हो रही थी ।
कोचिंग सेंटर के Boy's Hostel के सामने बिखरा हुआ खून और जवान लडके की लाश सभी के मन मे संशय पैदा कर रही थी ।
तभी एक Student दौडता हुआ आया और लाश के ऊपर से कपडा हटाने लगा , परन्तु पुलिसकर्मी ने उसे ऐसा करने से रोक दिया । बहुत देर तक पुलिसकर्मी और Student के मध्य बहस होती रही । आखिरकार पुलिसकर्मी को झुकना पडा ।
'अरे! पंकज ' छात्र कपडा हटाते ही जोर से चीखा ।
सभी लोगो का ध्यान आपसी बातचीत से हटकर सीधा उस लडके पर चला गया, अचानक एक चीख ने कोलाहल करती भीड को एकदम शांत कर दिया, जैसे किसी ने उफनते दूध मे पानी डाल दिया हो ।
लोग पुरी घटना के बारे मे जानने को उत्सुक थे , लाश पंकज नाम के छात्र की थी जो कि RPET की तैयारी कर रहा था ।
लेकिन लोग अब भी यही सोच रहे थे कि 'यह उम्र हि ऐसी है होगा प्यार का लफडा और लडकी ने धोखा दे दिया होगा, इसलिए ऐसा कदम उठाया होगा ।'
छात्र का नाम और कमरा नंबर पता चलते ही पंकज के कमरे की जांच करने लगे । जांच के दौरान एक नोट्स मिला जिससे पुलिस के लिए यह केस आसान हो गया ।
उन्हे सभी बाते और मौत का कारण कुछ कुछ समझ मे आने लगा ।
कुछ समय बाद ऐम्बुलेंस से पंकज की लाश को Hospital भेजते हि भीड भी धीरे धीरे छंटने लगी और शहर का माहौल फिर से हमेशा की तरह हो गया ।
सभी लोग अपने काम धन्धे मे लग गए और सुबह की घटना को भूल गए जैसे यह घटना बरसो पुरानी थी।
अगले दिन अखबार आते ही फिर से लोगो को कल सुबह की घटना याद दिला दी ।
अखबार मे बडे बडे अक्षरों मे लिखा था - " पढाई से तंग आकर छात्र ने की आत्महत्या " ।
लोगो को अपने अनुमान गलत लगने लगे और सभी कोचिंग सेंटर वालो को कोसने लगे ।
अखबार मे सुसाइड नोट के कुछ कुछ भाग छापा हुआ था -
'आदरणीय पिताजी
मै आपके लिए कुछ भी कर सकता हूँ ऐसा आपको मुझ पर विश्वास है । लेकिन मुझे माफ करना मै आपके विश्वास को तोड रहा हूँ । मुझे इंजीनियर नही बनना है मै Photographer बनना चाहता था । लेकिन आपने मुझे जबरदस्ती यहाँ भेज दिया। यहाँ का माहौल जेल से भी बदतर है, 10 घंटे कोचिंग और फिर रात मे 8 घंटे Self पढाई । यहा आकर मै तो कोलू का बैल बन गया हूँ । पापा निंद न आ जाए इसलिए खुद को कुर्सी से बांध कर पढाई करता हूँ । आप मुझे Call करते हो तब भी आप यह ही पूछते हो कि पढाई कैसी चल रही है और टेस्ट मे कितने नंबर आए? आपने कभी मेरा हाल नही पुछा । मै कैसा हूँ? यह आप भी कभी नही पूछते ।
पापा Please छोटे भाई के साथ ऐसा मत करना , उसे जो बनना है वो बनने देना निश्चित ही वो आपका नाम एक दिन ऊँचाई पर ले जाएगा ।'
आपका पंकज
इस सुसाइड नोट्स ने लोगो को वास्तविकता से परिचित करा दिया उन्हे पता चल गया
की कोचिंग सेंटर मे कैसे पढाई होती है । लोग भी कोचिंग सेंटर वाले को कोसने लगे । लेकिन पंकज तो चला गया अपनी इच्छा को मन मे लेकर ।
परन्तु क्या अब यह सिलसिला रूकेगा? क्या ऐसा करने वाले माँ बाप समझ पाएंगे? क्या वे अपने बच्चो पर अपनी इच्छा थोपना बंद करेंगे? क्या अब किसी को पंकज नही बनना पडेगा ? आखिर लोग कब समझेंगे ।
ऐसी कई कहानियाँ कोचिंग सेंटर मे, Hostels मे, घरो मे, बडे बडे शहरो मे दबी पडी है । बस कोई उससे सीख नही लेता और न ही कोई इसके रोकथाम के लिए कोई उपाय करता ।
लेखक - विरम सिंह सुरावा
इसीलिए जरुरी है कि बच्चों और अभिभावको के मध्य समझ का रिश्ता हो ना कि ज़बरदस्ती का। अच्छा व्यक्त किया
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