वाह रे मीडिया ! थप्पड से आतंकवाद का मजहब हो गया


  महारानी पद्मावती  अमर रहे ।
  जय सती माता
    जय चितौड़

padmavati movie


जयगढ दुर्ग  मे फिल्मी भांड  अपने बिजनेस के लिए सूरज पर कलंक लगा रहे थे । अपनी अभिव्यक्ति की आजादी के मद मे इठलाते हुए सूरज पर काला टिका लगाने की कोशिश कर रहे थे । चारों ओर उनके इस कुकर्म का स्वर सुनाई दे रहा था ।



फिल्म का डायरेक्टर बिना राजस्थान का इतिहास ढंग से पढे उज्ज्वल चरित्र पर  कलंक लगाने वाली फिल्म की शूटिंग करने जयपुर चला आया ।
शायद वो भूल गया था या उसने कभी राजपुतो का इतिहास नही पढा होगा अन्यथा भंसाली शेरो  के ठिकाने मे आने की हिमाकत नही करता वो भी ऐसी घटिया और गिरी हुई सोच के साथ ।

जयगढ़ दुर्ग पर आजादी के नाम पर किसी के उज्ज्वल चरित्र और अस्मिता पर आँख उठाने की कोशिश कर रहे थे । सब कुछ उनकी इच्छा के अनुसार चल रहा था । भंसाली अपने कुकर्म पर नाज करता हुआ शुटिंग करवा रहा था लेकिन उन्हे आने वाले तुफान शायद अंदाज भी नही होगा । फिर जो हुआ वो उसने सपने मे भी नही सोचा होगा । इनकी इस बात की  खबर लग गई आजादी, स्वाभिमान और अस्मिता की रक्षा के लिए मर मिटने वाले शेरो को फिर क्या था आ पहुंचे माँ करणी के सैनिक अस्मिता पर आँख उठाने वाले भंसाली की खातिर करने ।


राजस्थान मे मेहमान का अच्छे से स्वागत किया जाता है ऐसा ही  किया करणी सेना ने ,लेकिन इस बार दाल बाटी की जगह थप्पड से खातिरदारी की । भंसाली इस स्वागत को जिन्दगी भर नही भूल पाएगा । और जयगढ दुर्ग पर शुरू हो  गई  भंसाली की लीला , करणी सैनिक का एक हाथ गाल पर ऐसा पडा की भंसाली को दिन मे तारे दिख गए होंगे और वो रात होते होते ही अपने बोरिया बिस्तर समेटकर यहाँ से भाग गया ।

संजय लीला  भंसाली ने सोचा  होगा कि वो राजस्थान मे आकर महारानी पद्मावती पर फिल्म बना लेगा ।  उन्हे अलाउद्दीन की प्रेमिका बता देगा और राजपूत चुप बैठे रहेंगे ।
"अब संजय लीला भंसाली को सपने में करणी सेना जरूर याद आएगी ।"
संजय लीला भंसाली ने कहा है कि वो अब राजस्थान मे शुटिंग के लिए नही आएंगे और आना भी नही चाहिए चरित्रवान और स्वाभिमानी भूमि पर तेरे कदम भी नही पडने चाहिए ।

जिन्होंने अपने धर्म की रक्षा के लिए जौहर का रास्ता अपना कर धर्म को पाक साफ रखा उन प्रातः स्मरणीय सती माँ पर ऐसे झूठे कलंक लगाने वाले भांडो को ऐसा ही सबक सिखाना चाहिए ।

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आज तक विश्व में इतने हमले होते रहे और लाखो बेगुनाह लोग बेमौत मरते रहे पर आतंकवाद का कोई मजहब नही था लेकिन एक थप्पड क्या पड गई  आतंकवाद का मजहब हो गया ।

पैसो के लिए किसी भी हद तक जाने वाले यह फिल्मी भांड हमे हमारा इतिहास समझाएंगे । आजकल हिन्दुस्तान मे अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर किसी पर भी बिना कोई  research किए फिल्म बना देते है या कुछ भी लिख देते है यह कैसी आजादी है ।

और मीडिया वाले और कुछ लोग इसे आतंकवाद कहते है । बात आतंकवाद के मजहब की करे तो आज तक हुए इतने आतंकी हमलो का क्या मजहब था जरा हमे भी बताइए मुम्बई हमला,  संसद पर हमला उस समय तो आतंकवाद का कोई मजहब नही था । आज एक थप्पड क्या पड गई सीधा मजहब याद आ गया ।

    "वाह रे मिडिया! "

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