Hindi Story - Development
अरे भाई आज गाँव में इतनी भीड़ क्यों है? एक वृद्ध आदमी ने हाथ में बैनर लेकर घूमते एक लडके से पूछा.
‘काका
आपको पता नहीं है आज हमारे गाँव में माणिक जी की रैली है और वे अभी आने वाले है.
माणिक जी ही तो हमारे नेता है वे ही तो हमारी बात करते है और वे ही तो किसानों की
बात करते है. आप भी आइएगा.’ युवक ने जोश में कहते हुए आगे बढ़ गया.
वृद्ध
व्यक्ति बिना सभा स्थल पर रुके सीधे आपने खेतों की ओर जाने लगा जैसे लड़के की बात उसके
कोई काम की नहीं हो.
रास्ते में
चलते चलते वृद्ध आदमी अपने जवानी के दिनों को याद करने लगा और एक एक कर सभी बीते
हुए दृश्य आँखों के सामने घुमने लगे जैसे अभी अभी घटित हो रहे है. वह भी जब 25 वर्ष का था तो गाँव में जब कभी भी
कोई नेता या अधिकारी की सभा होती थी तो वह सबसे आगे होता था. Election के
समय तो वह दस दस दिनों तक घर भी नहीं आता था. पार्टी और नेता को जीताने में
जी जान लगा देते थे. घर परिवार वाले मना बोलते और कुछ काम करने की सलाह देते थे पर
युवा जोश कहाँ मानने वाला था वह तो और भी दुगुनी ताकत से प्रचार करता था. आखिर काम
भी क्यों न करे नेता लोग Speech ही ऐसी देते थे की न चाहते हुए उसके पैर
अपने आप उनके पीछे चलने लगते थे. कभी वे धर्म के नाम पर, कभी जाति के नाम पर और
कबी किसी और मुद्दे पर भड़काते थे और युवा जोश था ही ऐसा की जिस दिशा में कोई
धकेलता उसी दिशा में चल देता था चाहे वो गलत हो.
ये वही
माणिक जी है जिन्हें जीताने के लिए हमने कितनी मेहनत की थी. नेताजी ने भी बहुत
वादे किए थे. उन्होंने कहा था कि वे इस गाँव को शहर बना देंगे, किसानो के Loan
माफ़ कर देंगे, फसल के अच्छे दाम दिलाएंगे . और अपने इन्ही वादों की वजह से माणिक
जी भरी मतो से विजेता घोषित हुए थे. लेकिन माणिक जी चुनाब जीतने के बाद पांच वर्ष
में एक बार ही गाँव में आते थे वो भी तब जब चुनाव नजदीक हो अपने उन्ही वादों और
जोशीले भाषणों के साथ आते थे और लोगो को बहला कर फिर वोट ले जाते थे. गाँव के लोग
होते ही है सीधी सादी प्रवृति के जो सभी को सामान नजर से देखते है. उनके दिल में
किसी के लिए कोई गलत सोच नहीं होती है वे अपनी जबान के पक्के होते है इसी बात का
फायदा नेता लोग उठाते थे. और चुनाव जीत जाते थे.
नेताजी
आखिर नेताजी उन्होंने गाँव को सही में शहर बना दिया जहां पहले सभी लोग मिल जुल कर
रहते थे आज वे एक दुसरे का मुंह देखना भी पसंद नहीं करते है. गाँव में दंगा,
मारकाट, लड़ाई-झगड़े आम बात हो गई . जिस गाँव में पुलिस आती ही नहीं थी उसी गाँव में
अब आए दिन पुलिस आने लगी . कुछ लोग इसे ही विकास कहते है और नेता भी भाषण
में भी बड़ी शान से कहते है की हमारी पुलिस आपके लिए सदा तत्पर है. पर कोई यह नहीं
कहता की हम एक ऐसा समाज बनाएँगे जिसमे पुलिस की जरूरत भी नहीं हो.
इन 30
वर्षो में गाँव बिलकुल बदल सा गया है. विकास के नाम पर खेती की जमीन पर कल
– कारखाने लगा दिया और गाँव की उपजाऊ भूमि बंजर होने लगी. गाँव की एकमात्र नदी को
भी विकास के नाम पर दूषित कर दिया. और लोगो के मन भी दूषित कर दिए. लोगों में
धर्म, जाति के नाम का विष घोल दिया. दलित,
OBC, SC, ST और सामान्य वर्ग में बाँट दिया. किसी को आरक्षण दे दिया और किसी
को नहीं दिया, किसी को तो फ्री की सब सुविधा देने लगे और किसी कास्ट को कुछ भी
नहीं . और इसी कारण आए दिन झगडे होने लगे है. अब मेरा गाँव गाँव नहीं रहा यह शहर
हो गया. ऐसा सोचते सोचते वृद्ध की आँखों से सरिता बहने लगी. और सोचने लगा की कल यह
बैनर वाला लड़का मेरी तरह रोएगा यदि नेताओ को सहीं समय पर पहचाना नहीं. यह नेता लोग
अपने स्वार्थ के लिए गाँव को शहर तो बना दिया अब वे इसे शमशान भी बना सकते है.
तभी दूर से आती लाउड स्पीकर की आवाज से तंद्रा टूटी – ‘ मेरा भाइयों और बहनों में यहाँ पर आपके लिए आया हूँ ......’ वृद्ध को आवाज पहचानने में ज्यादा देर नहीं लगी और वृद्ध उन शब्दों को सुनकर मन ही मन मुस्कराने लगा तथा मन ही मन गाने लगा ‘ सजने रे झूठ मत बोलो खुदा के पास जाना है.’
लेखक - विरम सिंह
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