कविता - तो जिन्दा हो तुम / to zinda ho tum poem

कल अकेले मे अपने मन से पूछ बैठा कि क्या जिन्दा हूँ मै
तो अन्दर से जवाब आया -

अगर तुम्हारी धड़कन थम जाने से डरती नही
 तो जिन्दा हो तुम ।
आसमान को नीचा दिखाने का ख्वाब देखते हो 
तो जिन्दा हो तुम  ।
अपने रगो मे दहकते अंगारो का तप महसूस करते हो
 तो जिन्दा हो तुम ।
एक पल भी खाली बैठने से डरते हो
तो जिन्दा हो तुम।
कामयाबी की नई दास्ता बनाने की इच्छा अगर तुम्हे 
नींद से जगाती है 
तो जिन्दा हो तुम ।
gyandrashta

                 प्रद्युम्न सिंह "भम्सा"


English version

Karl akele me apne man se puch betha
ki kya zinda hu me .
To andar se jvab aya -

Agar tumhari dhadkan tham jane se
Darti nai
to zinda Ho tum.
Aasaman ko nicha dikhane ka khvab
Dekhate ho
 to zinda ho tum.
Apne rago me dahakte angaro ka tap
Mahsus krte ho
 to zinda ho tum.
Ek pal bhi khali bethane se darte ho
To zinda ho tum
Kamyabi ki nai dasta bnane ki ichchha
Tumhe nind se jgati hAi.
 To zinda ho tum.

               

5 comments:

  1. बहुत खूब ... जिन्दा होने की कई निशानियाँ हैं ...
    लेखक हमेशा जिन्दा रहता है ....

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  2. सही कहा आपने दिगम्बर नसवाजी

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  3. Replies
    1. इस कविता को किसने लिखा ।

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  4. ब्लॉग पर आपक स्वागत है

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