rani padmavati
जली रानियाँ जौहर व्रत ले, अंगारों से खेली थी अंगारों से खेली|पूज्य तन सिंह जी की यह line इतिहास के उस क्षण को हमारे नेत्रों के सामने ला देती है. जब अपनी और देश की आन-बान-शान के लिए ललनाओ ने अपने शरीर को आग को समर्पित कर दिया था. अलौकिक सौन्दर्य और यौवन को हँसते-हँसते देश के लिए आग में जला कर रख कर दिया. लेकिन आज हम उन को भूलते जा रहे है और हम केवल फिल्मो में दिखाए झूठे तथ्यों को सच मानकर अपने ही इतिहास को भूलते जा रहे है.
तन सिंह जी की ही चार line है कि -
चित्तौड दुर्ग की बुझी राख में बीती एक कहानी है.
जलते दीपक में जौहर की वीरों याद पुरानी है
चूल्हों की अग्नि में देखो पद्मावती महारानी है.
सन 1303 की बात है. जब चितौड पर रावल रतन सिंह जी का शासन था और दिल्ली पर अलाउद्दीन खिलजी का शासन था. जब अलाउद्दीन ने गुजरात जीता था तब मेवाड़ में रावल समर सिंह जी ने उसे दंड लेकर जाने दिया था जिससे खिलजी के मन में यह बात खटक रही थी.
रावल रतन सिंह जी की पत्नी महारानी पद्मावती अलौकिक सौन्दर्य की धनी थी. ऐसा कहा जाता है की जब padmavati पानी पीती थी तो पानी गले से स्पष्ट दिखाई देता था. रावल रत्न सिंह की अपने अक सेनापति से किसी बात को लेकर अनबन हो गई और वह सेनापति सीधा खिलजी के पास गया और उससे हेल्प मांगी. उसने खिलजी से कहा की रत्न सिंह की पत्नी अत्यंत रूपवती है ऐसी रुपवान को तो आपके महलो में होना चाहिए. खिलजी मेवाड़ से बदला तो लेना ही था और उसे एक और लालचा लग गई. और फौज को चित्तोड़ पर हमला करने का आदेश दे दिया.
खिलजी किले पर 6 महीनो तक घेरा डाले रहा लेकिन उसे कोई सफलता नहीं मिली तो उसने सोचा की राजपूतों को सीधी लड़ाई और नियमो के अंदर रहकर हराना असम्भव है इसलिए उसने छल से काम लेने का विचार किया.
Read Also
उसने राजा रतन सिंह जी से कहा की वो संधि करना चाहता है तो राजा ने उसकी बात पर विश्वास करके उसको महल में बुला आतिथ्य किय और जब रावल उसे छोड़ने किले के अंतिम पोल तक आये तो उस छली ने धोखा करके रावल को कैद करके अपने शिविर में ले गया. और उसने महल में संदेश भिजवाया की यदि रतन सिंह को सुरक्षित पाना है तो पद्मिनी को शिविर में भेजो.
जब महल में यह खबर आई तो महल में दारुण लहर सी दौड़ गई और राजपूती तलवारे म्यान से निकल गई. अपनी आन बान के लिए हमेशा मरने को तैयार रहने वाले वीर राजपूत लड़ने को तैयार हो गये. लेकिन उनके सामने समस्या यह थी की रावल खिलजी की कैद में है उसे कैसे बचाए ?
महारानी पद्मिनी, गौरा-बादल और अन्य मेवाड़ी वीरों ने चर्चा करके निश्चित किया की छल का जवाब छल से दिया जाए. दुर्ग से खिलजी को संदेश भिजवाया गया की पद्मिनी आ रही है लेकिन उसकी दो शर्ते है एक तो उसके साथ उसकी दासियाँ भी आएगी और दूसरा यह की एक बार वो रतन सिंह से मिलना चाहती है. अपनी विजय के मद में चूर खिलजी ने उस बात को मान लिया.
योजना के अनुसार 1600 डोलियाँ में लड़ने मरने को आतुर मेवाड़ी वीर बैठ गये और सबसे आगे की डोली में गोरा और बादल बैठे थे. किले से निकल कर डोलियाँ सीधी रतन सिंह के पास गई और योजन के अनुसार बादल रतन सिंह को लेकर किले की तरफ बढ गया और गोरा हाथ में तलवार लेकर शाही सेना को रोकने लगा.
अपनी इस हार से आहत होकर खिलजी ने किले पर हमला कर दिया और राजपूत वीर भी केसरिया कर... कंसुबा की मनवार करके युद्ध के लिए तैयार हो गये. भयंकर युद्ध होने लगा और चारो और खून बहने लगा. और उधर महलो में जौहर की तैयारी होने लगी.
महारानी पद्मावती और 1600 क्षत्राणियों ने जौहर स्नान करके अपने शारीर को तो मिटा दिया लेकिन पीछे छोड़े गई कभी न मिटने वाला ऐसा इतिहास जिसका देश हमेशा आभारी है. जब खिलजी महल में आया तो उसे मिली सिर्फ राख.....
इस बात को पूज्य तन सिंह जी ने लिखा के कि -
जिनके कुल की कुल ललनाएँ कुल का मान बढाती
अपने कुल की लाज बचाने लपटों में जल जाती, यश अपयश समझाती.....
rajput ladies facts
राजपूत ladies कभी भी दरबार में dance नहीं करती थी. और film में जिस तरह से घुमर करते हुए दिखाया गया है वो बिलकुल गलत है. यह इतिहास के साथ छेड़छाड़ की जा रही है. जो की एक देशभक्त कभी भी स्वीकार नहीं कर सकता.
इस बात को गढ़वी ने बहुत सरल शब्दों में लिखा है -
रंग महल में बानियाँ बहुत रहे, एक बोल सुने नहीं बानियाँ का
दरबार में गुणिका नाच नचे, न तान देखे गुणिका का
वे हिन्द की राजपुतानियाँ थी .........
अर्थात
महल में दासियाँ बहुत रही है लेकिन किसी दासी की बात में नहीं आती थी, राजदरबार में गुणिका के नाच को भी नहीं देखती थी, वो हिन्द की राजपुतानियाँ थी.अब आप ही सोचे जो दरबार में हो रहे नाच को नहीं देखती हो वो दरबार में जाकर कैसे नाच सकती है? यह सब बातें भंसाली ने पढ़ी नहीं और पद्मावती पर फिल्म बनाने चला है.
Read Also
Indira gandhi biography in hindi
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, संसार के सबसे बड़े पापी “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteNyce post likhi h apne. Thanks for sharing.
ReplyDeleteआज के ज़माने में जातीय अहंकार की बात बेमानी है. पद्मावती अथवा पद्मिनी पर जायसी ने 'पद्मावत' महाकाव्य की रचना की है इसमें कल्पना का पुट है. अब यदि करणी सेना जायसी के विचारों से असहमत है तो क्या 'पद्मावत' की प्रतियों को आग के हवाले कर दिया जाए? असहिष्णुता और दादागिरी आज की राजनीति का हिस्सा बन गयी है. जायसी से लेकर तनसिंह जी ने पद्मावती पर जो भी लिखा है उन सब में ऐतिहासिक तथ्यों से अधिक कल्पना है. मेरी दृष्टि में फ़िल्म 'पद्मावती' का विरोध उसे और अधिक सफल बनाएगा. 'पद्मावती' इस विरोध के बाद विदेशों में तो कुछ ज़्यादा ही हिट रहेगी. जिनको फ़िल्म 'पद्मावती' से नाराज़गी है वो उसे थिएटर में देखने न जाएं.
ReplyDeleteबात जाति की नही है बात है हिन्दुत्व की । बात है आन बान और स्वाभिमान की ।
Deleteवसीम बरेलवी के शेर है - उसूलों पे जहाँ आँच आये टकराना ज़रूरी है
जो ज़िन्दा हों तो फिर ज़िन्दा नज़र आना ज़रूरी है।
nice post...
ReplyDeleteThanks pammi ji post lo shamil krne ke lir
ReplyDeleteबहुत सुंदर भारतीय इतिहास स्वयं में महान चरितार्थो से भरा पड़ा है ।
ReplyDeleteस्व स्वभिमान से बढकर कुछ नही
very nice post
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर ऐतिहासिक जानकारी.....
ReplyDelete