जानिए कैसे महाभारत युद्ध में 5 योद्धाओं का निहत्थे वध किया गया...

Mahabharat yuddh Story in Hindi


hello दोस्तों आज हम इस post में महाभारत के अनसुने किस्से- कहानियों को आपके साथ share करेंगे...
महाभारत भारत के इतिहास का प्राचीन और बड़ा ग्रन्थ है.. महाभारत के युद्ध मे असंख्य लोगो की मौत हुई थी.. इस भयंकर  युद्ध में कई महावीरों ने भाग लिया और वीरगति को प्राप्त हुए..

इस युद्ध की जब शुरुआत हुई तब कौरवों के सेनापति गंगापुत्र  पितामह भीष्म  ( बचपन का नाम देवव्रत ) ने कुछ नियम बनाये थे जो की एक धर्म युद्ध के लिए जरुरी थे..उन युद्द के नियमों मेंसे एक यह नियम था की किसी भी निहत्थे योद्धा का वध नहीं किया जाएगा.. परन्तु जैसे - जैसे युद्ध आगे बढ़ता गया वैसे ही युद्ध के नियमों को तोडा  जाने लगा.. उस में से गंगापुत्र के द्वारा बनाये एक नियम - निहत्थे को मारा नहीं जायेगा को भी तोडा गया..

आज इस पोस्ट में हम उन 5  योद्धाओं के बारे में जानेगे जिनको तब मारा गया जब ये निहत्थे थे अर्थात उस समय उनके पास कोई अस्त्र-शस्त्र न हो..

महाभारत के युद्ध में कुछ ऐसे योद्धा थे जिन्हें मारना बहुत मुश्किल था ... और जब उनके हाथ में धनुष हो तो भीर उन्हें जितना भी मुश्किल था ... इस कारण युद्ध में उन योद्धा को निहत्था करके उनका वध किया गया..

5  योद्धा जिन्हें निहत्थे मारा गया..


click and read  content 



1. निहत्थे पितामह भीष्म  पर अर्जुन ने चलाएँ थे तीर


             गंगापुत्र भीष्म महाभारत के वृद्ध और बहुत ताकतवर योद्धा थे.. उन्हें अपने पिता से इच्छा मृत्यु का वरदान मिला हुआ था.. अर्थात उनकी मौत तब ही हो सकती  थी जब वे खुद मौत चाहते हो.. इस कारण उन्हें उनकी इच्छा के बिना  मारना असम्भव था.. और जब तक गंगापुत्र भीष्म जीवित थे तब तक पांडवों की जीत भी सम्भव नहीं थी क्योंकि उनके बारे में कहा जाता था की गंगापुत्र अपराजेय है अर्थात उनकी हार भी न हो सकती थी..


bhishma_killed


पांड्वो के लिए यह समस्या थी की अब पितामह को रास्ते से कैसे हटाएँ/? तब कृष्ण भगवान ने बताया की जब तक गंगापुत्र के हाथ में धनुष है तब तक उन्हें न हो हराया जा सकता है और न ही उनका वध किया जा सकता है.. इसलिए ऐसा उपाय किया जाए की वे अपना धनुष रख दे तब अर्जुन उन्हें अपने बाणों से बिंध दे..


लेकिन उन्हें निहत्था कैसे किया जाए ? इस प्रश्न का उत्तर भी पितामह से माँगा गया तो उन्होंने बताया किन यदि कोई नारी उनके सामने आ जाए तो वे धनुष रख देंगे..
तब कृष्ण ने शिखंडी का रहस्य सभी को बताया की शिखंडी पहले के जन्म में नारी थी और इस जन्म में भी भीष्म उन्हें नारी ही मानते है..

अगले दिन भीष्म को मारने के लिए अर्जुन ने अपने रथ पर शिखंडी को बिठा लिया .. जब युद्ध भूमि में अर्जुन और पितामह का आमना सामना हुआ तो शिखंडी दोनों के बीच में आ गया.. चूँकि भीष्म शिखंडी को नारी मानते थे

इस कारण उन्होंने धनुष बाण रख दिए.. और इसी अवसर का लाभ उठाकर अर्जुन ने गंगापुत्र पर बाणों की वर्षा कर  दी .. अर्जुन ने पितामह पर इतने तीर चलाएँ की उनके पुरे शरीर में तीर आर-पार हो गये और पितामह उन तीरों से जमीन पर आ गिरे .... आर-पार हुए तीरों से बनी शैय्या  पर लेट गये..

इसप्रकार अर्जुन ने उन्हें निहत्था होने पर भी शिखंडी की ओट से तीर चलाकर शरशैया पर लेटा  दिया...


   read - ये मंजिल कैसे मिलेगी
             चन्द्रसेन राठोड़

2.  वीर अभिमन्यु का निहत्थे वध किया गया ..


               महाभारत के युद्ध में गंगापुत्र भीष्म जैसे वृद्ध योद्धा ने भाग लिया तो दूसरी तरफ वीर अभिमन्यु जैसे युवाओं ने भी भाग लिया.. युद्ध ही नहीं लड़ा अपितु ऐसा युद्ध लड़ा की दुश्मन को भी नाको चने चबवा दिए..
अभिमन्यु , अर्जुन और सुभद्रा का पुत्र था. और श्री कृष्ण का भांजा था.. वीर अभिमन्यु को अस्त्र- शस्त्र चलाना स्वयम श्री कृष्ण ने सिखाया था..

महभारत कजे युद्ध में जब कौरवों के सेनापति गुरु द्रोणाचार्य बने तो उन्होंने युधिष्ठिर को बंदी बनाने के लिए चक्रव्यूह  की रचना की... उस दिन अर्जुन लड़ने के लिए युद्ध क्षेत्र के दुसरे छोर की और चले गये थे... पांडवों में अर्जुन और श्री कृष्ण को छोड़कर किसी को भी उस व्यूह  को तोडना नहीं आता था..

इस स्थिती  में सभी चिंता में पड़ गये की अब क्या किया जाए? तो उस समय अर्जुन पुत्र वीर अभिमन्यु सबके सामने आया... और सम्राट से कहा की आप चिंता न करे , मै इस चक्रव्यूह  का भेदन करूंगा.. लेकिन अभिमन्यु को चक्रव्यूह  में प्रवेश करना तो आता था उससे बाहर कैसे निकलते है यह उसे पता नहीं था...

बाकि लोगो ने कहा की जब अभिमन्यु चक्रव्यूह का भेदन करेगा तो हम उसके पीछे पीछे अंदर चले जाएँगे...
लेकिन जब अभिमन्यु ने चक्रव्यूह का भेदन किया तो बाकी लोगो ने भी अंदर जाने का प्रयास किया लेकिन जयद्रथ ने सभी को रोक लिया... इस कारण अभिमन्यु चक्रव्यूह  में  अकेला पड़ गया... वह लड़ते लड़ते अंतिम द्वार पर आया जहाँ पर कौरवों के सभी महारथी मौजूद थे...

अभिमन्यु ने सबके साथ वीरता से युद्ध किया लेकिन उसे वो द्वार तोडना नहीं आता था... तो भी वो प्रयास करता रहा.. कौरवों के यौद्धाओ ने देखा की यह यदि यहाँ से निकल गया तो उनकी नाक कट जाएगी ..ऐसा सोचकर उन्होंने एक साथ अभिमन्यु पर हमला बोल दिया...

इस कारण अभिमन्यु का सारथी मारा गया और उसका रथ भी टूट गया... लेकिन तब भी  वो रथ का पहिया लेकर युद्ध करने लगा.. इस अवस्था में भी कौरवों के सात सात महारथियों ने मिलकर उस निहत्थे वीर बालक का वध कर दिया...

लेकिन अभिमन्यु ने मरकर भी उस दिन का युद्ध जीत लिया और अपना नाम इतिहास में अमर कर दिया...



mahabharat facts in hindi

3.  द्रोणाचार्य का वध


     गुरु परशुराम के शिष्य और कौरवों व पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य भी उच्च कोटि के योद्धा थे. उन्हें भी मारना  या हराना बहुत मुश्किल था..

गुरु द्रोणाचार्य को भी युद्ध से हटाए बिना पांडव उस युद्ध को नहीं जीत सकते थे..इस कारण श्री कृष्ण ने द्रोणाचार्य को मारने का एक उपाय बताया की -'द्रोणाचार्य को यदि किसी प्रकार से शोक में डाल  दिया जाए तो वे शस्त्र छोड़ देंगे..' और भीम से कहा की तुम अश्वथामा नामक हाथी  को मार दो और गुरुवर से कहो की अश्वथामा मारा गया..

भीम ने ऐसा ही किया .. भीम की बात सुनकर द्रोणाचार्य बहुत दुखी हुए लेकिन उन्हें भीम की बात पर विश्वास नहीं हुआ.. बात की वास्तविकता जानने के लिए उन्होंने युधिष्ठिर  पूछा की यह बात सही है क्या कि -'मेरा पुत्र युद्ध भूमि में मर गया?" तब युधिष्ठिर ने कहा की -' अश्वथामा मारा गया, नर नहीं कुंजर..' लेकिन कुंजर शब्द कहने से पहले ही कृष्ण ने शंख बजा दिया जिससे द्रोणाचार्य उसे सुन नहीं पाये...

और अपने पुत्र शोक में शस्त्र त्याग कर भूमि पर बैठ गये.. उसी समय द्रोपदी के भाई धृष्टद्युम्न ने तलवार से द्रोणाचार्य का वध कर दिया...
इस प्रकार दूसरी बार पांडवों ने युद्ध नियम को तोड़ते हुए निहत्थे योद्धा की हत्या कर दी...



4. दानवीर कर्ण का निहत्थे वध किया गया...


karna_vadh


      दानवीर कर्ण कौरवों की सेना के प्रमुख सेनापति थे.  जहाँ पांडवों के पास गांडीवधारी अर्जुन थे तो कौरवों के पास परशुराम शिष्य कर्ण थे... कर्ण महान योद्धा थे.. लेकिन वो अपने पुरे जीवन में सम्मान को तरसते रहे..  उन्होंने परशुराम जी से शिक्षा ग्रहण की लेकिन जब परशुराम को पता चला की कर्ण ब्राह्मण नहीं है. तो उन्होंने उसे शाप दे दिया की जब उसे अपनी विद्या की सबसे अधिक जरूरत होगी तो वो अपनी विद्या भूल जाएगा ...

इस कारण कर्ण जब अंतिम दिन अर्जुन के साथ युद्ध कर रहे थे तो वो अपनी विद्या भूल गये और एक ब्राह्मण के शाप के कारण उनके रथ का पहिया जमीन में धँस गया...

कर्ण अपने अस्त्र शस्त्र छोडकर रथ का पहिया निकाल रहे थे तब अर्जुन ने निहत्थे कर्ण पर दिव्यास्त्र का प्रयोग किया और कर्ण का वध कर दिया..
इसप्रकार उस महान योद्धा का छल से अंत कर दिया गया...


5. भूरिश्रवा का सात्यकी द्वारा वध


    महाभारत के युद्ध में जिन योद्धाओं का निहत्थे वध किया गया उसमे से भूरिश्रवा भी एक थे.. भूरिश्रवा कुरुवंशी थे और वे दुर्योधन की और से युद्ध में शामिल हुए थे...

युद्ध के एक दिन भूरिश्रवा और सात्यकी आपस में युद्ध लड़ रहे थे तब सात्यकी लड़ते लड़ते बेहोश हो गया.. भूरिश्रवा बेहोश सात्यकी को मारना चाहते थे.. उनसे कुछ दूर अर्जुन युद्ध कर रहे थे, उन्होंने भूरिश्रवा के इरादे को भांप लिया और एक ऐसा तीर चलाया की भूरिश्रवा का दाहिना हाथ कट गया..

भूरिश्रवा ने इसे युद्ध नियमों के विरुद्ध बताते हुए युद्ध भूमि में ही धरने पर बैठ गया... तभी सात्यकी को होश आ गया... उसने भूरिश्रवा को समाधि लगाये देखा तो अपनी तलवार से उसका वध कर दिया...
और सात्यकी जैसा वीर ने भी एक निहत्थे योद्धा को मारकर युद्ध नियम को
तोडा था...


दोस्तों इस प्रकार महाभारत के जिस युद्ध को धर्म और अधर्म के मध्य का युद्ध कहा जाता है उसमे कई ऐसी घटनाएँ हुई जो धर्म विरुद्ध थी.. जिसमे मानवता भी शर्मसार हुई और वीरो की वीरता भी कलंकित हुई..


दोस्तों आपको हमारी यह पोस्ट कैसी लगी आप अपने विचार comments बॉक्स में जरुर रखे...

हम आपके लिए ऐसे ओर article लेकर आयेंगे .. आप हमारी नई post को अपने ईमेल पर सीधे पा सकते है... इसके लिए आपको हमारा email subscription लेना हो जो की बिल्कुल free है..
आप निचे दी फॉर्म में अपनी ईमेल id डालकर फ्री सब्सक्रिप्शन ले सकते है..

1 comment:

  1. जब पहली बार कोई नियम तोड़ता हैं तो फिर ये सिलसिला चलता रहता हैं

    ReplyDelete