कविता
नीली नीली आँखो से तीर निकलते देखे है
घायल पंछी की भांति तड़पते आशिक देखे है ।।
कोयल जैसी आवाज उसकी , रसगुल्ले जैसे होठ है ।
इन होठो पर मरते युवा देखे है ।।
बादाम जैसी आँखे उसकी , हिरणी सी चाल है ।
आँखो से आँखे लड़ाते नौजवान देखे है ।।
वो भाव देती नहीं , ( फिर भी) चींटी की तरह चिपकते है।
भारत माता पुकार रही , अनजान बनते युवा देखे है ।।
जिसने नौ माह पेट मे रखा , दि जमाने की हर खुशी।
उस माँ को "तेरी क्या औकात " कहते बेटे देखे है ।।
गाय माता दुख मे पुकार रही है ।
इश्क मे घायल युवाओ को अनजान बनते देखे है ।।
घायल पंछी की भांति तड़पते आशिक देखे है .....
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विरम सिंह सुरावा
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