Heart Touching Story in hindi
Yaden Room Number 35 Ki
याद जब आती है तो मेलें में अकेला कर जाती है, हजारों के पास होने पर भी किसी के न होने का अहसास दिला जाती है.. जिस स्थान से जो यादें जुडी होती है वो जगह हर क्षण गुजरे कल के उन पलों की याद दिलाती है.. उनसे जुडी हर वस्तु उनके पास न होने पर भी पास होने का अहसास दिला अकेलापन महसूस करा देती है...
ऐसी ही कुछ यादें जुडी हुई है 35 नंबर के साथ... वैसे 35 नंबर न कोई lucky नंबर है और न ही किसी महबूबा के मकान का नंबर है .. उदयपुर में फतेहसागर झील जहाँ कितने ही मजनूं अपनी लैला की तलाश में शाम के समय भँवरे की भांति मंडराते है .. किसी को तो कली मिल जाती है तो किसी को मुरझाएं हुए फूल से ही संतोष करना पड़ता है...
उसी झील से थोड़े से फासले पर स्थित विद्या भवन के जुबली हॉस्टल के प्रथम तले का कमरा, जिसे सब रूम नंबर 35 के नाम से जानते है. कॉलेज जीवन के सबसे यादगार पल हॉस्टल के ही होते है और ऐसी ही कुछ यादें इस कमरे के साथ जुडी हुई है...
पिछले दो बसंत से यह कमरा अपने बाशिंदों की चहलपहल से आबाद रहा..वैसे तो इस कमरे पहले भी कई मुसाफिर रह चुके है परन्तु हम जैसा कोई राहगीर नहीं मिला होगा...
मिलकर किसी को रुलाना, फिर रोते को हंसाना;
हो चाहें ख़ुशी या गम हर पल को साथ में जीना...
यही विशेषताएँ यहाँ के बाशिंदों को ओरों से अलग करती थी....
कॉलेज खत्म होने के बाद सब साथी अपने अपने गाँव की ओर प्रस्थान कर चुके थे.. लेकिन मैं पहले ही यहाँ रहने का निश्चिय कर चूका था मगर मुझे अपना निश्चिय इतना जल्दी बदलना पड़ेगा, मुझे भी पता नहीं था.. वैसे भी भविष्य को किसने देखा है जब होता है तब ही पता लगता है की क्या होने वाला था, और कभी कभी तो होने के बाद ही पता चलता है...
सभी को विदा करने के बाद पीछे रह गये थे मै और 35 नंबर वाला कमरा...जो अपने में २ बसंत की यादों को समेटे किसी के होने का अहसास दिलाता था...सभी को विदा करने के बाद कमरे में आकर लेट गया और अपने में ही खो गया... तभी लगा कोई बरामदे में टहलते हुए जोर जोर से गा रहा है-
"बन्ना थारे धुंधलियाँ धोरां में
म्हारी चलती मोटर थाकी....."
गीत के बोल रिपीट हो रहे थे और आवाज तेज हो रही थी...उसने गाना बंद किया और कहने लगा -'बाबु....ऐ बाबु... बाबु.....उठ जा बाबु... '
'जसवीरसा!' मैने जोर से पुकारा, सामने से कोई जवाब नहीं आया...
अपने आप को सम्भालते हुए उठ बैठा और अपने आसपास देखा तो पाया की कमरे में तो अकेला ही हूँ ऊपर छत पर लगा पंखा धीमी गति से घूम रहा था और मच्छर भिनभिना रहे थे..खिड़कियाँ बंद थी और कुर्सियां किसी के बैठने के इंतजार में पलक पावड़े बिछाए खड़ी थी...
अभी उठ कर अंगड़ाई ही ली थी कि लगा कोई कह रहा है-'जरा धीरे से, आवाज मत करों, जसवीरसा पढ़ रहे है... पलट कर देखा तो वहाँ कोई नहीं था..
दरवाज़ा, खिड़कियाँ, टेबल, कुर्सियाँ सबको देख ऐसा लग रहा थी की यह कुछ कहना चाहते है... जब हम अकेले होते है तो हवाएँ भी बातें करती है, खिड़कियाँ किसी की याद दिलाती है, पंखा भी बतियाता है बस जरूरत होती है तो सुनने वाले की .... आज अकेला था मुझे भी किसी की जरूरत थी और उन्हें भी किसी की जरूरत थी...
इस बात को समझते हुए दरवाजे के पास वाली टेबल बतियाने लगी -' मुसाफिर! कहाँ गये तेरे वो हमराही....? कहाँ गया वो आशिक दीवाना...? जिसके हाथो के प्रहारों को मैने कई बार झेले है...जब वो रात रात भर जागता
था तब मैने उसे अपनी गोद में सुलाया है... बताओं कहाँ गया वो...?
पर मैं चुप था....
बिना उत्तर की प्रतीक्षा किए उसने पुछना जारी रखा ....'सब के सुख दुःख का साथी; सैकड़ों दिलों का राजा... अपने अंदर रहस्यों का समन्दर रखने वाला वो बाशिंदा कहाँ गया,,,?'
'किसी को हंसाने से पहले खुद ही हंस जाता, जब हंसता तो खुद को ही नहीं सम्भाल पाता.... हँसना - हँसाना ही उसका काम था वो गोल-मटोल , जोली कहाँ गया?'
लेकिन मैं फिर भी चुप था.... बोलकर क्या बताता की अब तेरे बाशिंदे नये ठिकाने पर चले गये है तो उसे कितना दुःख होता,,,,,
लेकिन वे अब भी कातर दृष्टि से मुझे देख रहे थे जैसे अब मेरे होठ खुलंगे और जवाब देंगे... पर मै तो खुद ही अकेला था... क्या करता... जब उनकी दृष्टि मुझ पर से नहीं हटी तो मैने अपनी आँखे बंद कर ली...
परन्तु जिस प्रकार पानी देखने से प्यास नहीं बूझ सकती उसी प्रकार आँखे बंद कर लेने से सामने जलती आग नहीं बूझ सकती... लेकिन ओर करता भी क्या?
जब भी कमरे से ध्यान हटाने की कोशिश करता तो लगता कोई गा रहा है -
:
"ओ फिरकी वाली तू कल फिर आना
नही फिर जाना तू अपनी ज़ुबान से
के तेरी नैना है शराब बेईमान से
ओ मतवाली यह दिल क्यूँ तोड़ा
यह तीर काहे छ्चोड़ आ नज़र की कमान से
के मार जायुंगा मैं बस मुस्कान से "
पर आखों के आगे तो सब सुना सुना था न कोई फिरकी वाली थी न ही कोई साथी था....
तभी सोचा उठ कर कुछ खा लूँ पर याद आया गुड-चने रखने वाला तो अब यहाँ नहीं है फिर भी मन कठोर कर हल्के हाथो से अलमारी को खोला...तो सामने का नज़ारा देख हक्का बक्का रह गया.. अंदर कुछ मच्छर खो-खो खेल रहे थे दोएक ने तो मुझे विपक्षी टीम का समझकर आउट कर दिया... मैने भी उनके खेल में दखल नहीं देते हुए अलमारी को जैसे खोली थी ऐसे ही बंद कर दी....
मन बहलाने के लिए उठ कर बरामदे में आ गया परन्तु यहाँ भी एकांत था.. जो कभी मुझे पसंद था लेकिन आज विष बाण की भांति चुभ रहा था... थोडा टहल कर पुन: कमरे में आ गया...
पंखा अब भी धीमी गति से चल रहा था और मैने भी उसे तेज़ करने की कोशिश नहीं की, पलंग पर बिस्तर आधा समेटा पड़ा था...दिवार वाले हेंगर पर एक आधा काला आधा सफेद पेंट लटक रहा था जो अपने पर गिरती पपड़ी से असली रंग के अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है, पास में ही लटकता मटमैला कमीज जिसमे से झांकते कुछ सफेद बिंदु कमीज के कभी सफ़ेद होने का अहसास दिला रहे थे...
इन सब के अलावा कमरे में मैं और अलमारी में वो खो खो खेलते मच्छर थे...
इस अनचाहे एकांत में जो लम्हे याद आ रहे थे वो किसी पत्थर को भी पिघला सकते थे ...लेकिन अब वो सब कहाँ जो हमने साथ में बिताया.....
रात-रात भर चलती बातें
जाग कर बिताई वो रातें
कभी अपना, कभी उसका हाल सुनाते
कुछ अपनी, कुछ उनकी सुनते-सुनाते
साथ गाते, साथ पीते
हर पल को साथ ही जीते ...
उन साथ बिताएं लम्हों की यादे तीर की भांति दिल को चुभ रही है पर नम आंखे हो रही है...
वैसे तो कुछ बसंत का साथ था अपना पर लगता है जैसे युगों युगों के हमराही आज बिछुड़ गये हो...
अब 35 नंबर की प्रत्येक वस्तु सवाल कर रही है... बीते पलों को याद दिला रही है... इन सब के बीच अकेले रहना बहुत मुश्किल हो रहा है इसलिए अपने निश्चिय को बदलकर रूम नंबर 35 को अलविदा कह रहा हूँ...
यह कमरा अब अकेला हो जायेगा और इंतजार करेगा अपने नये बाशिंदों का ताकि उन्हें वो अपने सिरफिरे, अलबेले बाशिंदों की कहानी सुना सके.... अपना दर्द बयाँ कर सके....
विरम सिंह देवड़ा
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बहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteOhhh it is really awesome viramsa...that is the true bonding of brotherhood and yaari. missing my company...
ReplyDelete#keep our good memories in heart and move forward for creating new...#my35
Hukm mere pass word nhi h, is sunahare do salo ki yado ko naam dene k liye, bt jo b in do basnat me hua, vo to life me kbhi ho hi nhi skta, unforgettable hkm
ReplyDeleteThere are many memories of Room No. 35 which we can never forget.
ReplyDeleteIn these two buses of Vidya Bhawan, there was so much bonding between 5 lions that the room no. Of Jubilee hostel 35 is always trying to lock down.There are many memories of Room No. 35 which we can never forget.
ReplyDeleteSuperb
ReplyDeleteगज़ब
ReplyDeleteADBHUT LEKHNI - MAZA AA GYA _ YEH YAADE AB INTERNET PR AMAR HO JYGI 😍 .
ReplyDeleteयह सच है कि कुछ चीजों से जुड़ी कोई पुरानी यादें हमेशा याद आती है और हमें इस भीड़ भरे संसार में भी अकेले पन का एहसास दिला आ जाती है
ReplyDeleteBahut hi rochak and insparing post apne write ki hai.
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