आखिर महाभारत का युद्ध क्यों हुआ था? 5 Reason Of Mahabharat Yuddh

mahabharat yuddh ke karan kya the 


महाभारत का युद्ध history का सबसे विनाशक युद्ध माना जाता है.. यह युद्ध 18 दिनों तक चला और इसमें असंख्य सैनिक वीरगति को प्राप्त हो गये... वैसे ये युद्ध एक परिवार का था लेकिन इसमें पुरे भारत वर्ष के राजाओं ने इसमें भाग लिया था...


mahabharat yuddh


महाभारत काल में हस्तिनापुर बहुत शक्तिशाली राज्य था और इसी राज्य के कौरवों और पांडवो के आपसी झगड़े में कितने ही लोगो की लाशें बिछा दी गई.. इस युद्ध की शुरुआत कोई एकाएक नहीं हुई थी... इसके पीछे कितने ही वर्षो की चलती आ रही भाईओ की लड़ाई का परिणाम था..

इस युद्ध के होने के कई कारण थे.. बहुत सी ऐसी घटनाएँ हुई जो की इस युद्ध का कारण बनी थी... कौरवों का बड़ा भाई दुर्योधन था और पांडवों का बड़ा भाई युधिष्ठिर था... इन दोनों में से युधिष्ठिर बड़े थे और धर्म के ज्ञाता भी थे इस कारण हस्तिनापुर के युवराज बनने के लिए वो ही उपयुक्त थे... लेकिन दुर्योधन के पिता उस समय पांडू की मृत्यु के बाद राजा बन गये थे, तो दुर्योधन अपने पिता का बड़ा पुत्र होने के नाते युवराज बनने की चेष्टा रखता था...

दुर्योधन की इसी चेष्टा का परिणाम महाभारत निकला.. महाभारत के युद्ध के पीछे ये मुख्य कारण था लेकिन इस कारण के साथ साथ 5 मुख्य कारण और भी थे जिसके कारण महाभारत का युद्ध हुआ...

कुछ लोग मानते है की लाक्षागृह  , द्युत , हस्तिनापुर का विभाजन आदि महाभारत युद्ध के कारण थे लेकिन ऐसा माना उचित नहीं है क्योंकि यह सब तो साइड की घटनाएँ थी कोई प्रमुख कारण नहीं थे..
आज हम उन 5 कारणों की बात करेंगे जो की महाभारत युद्ध के प्रमुख कारण थे.. जिनके कारण ही महाभारत का युद्ध हुआ ... इसलिए आप इस पोस्ट को last तक जरुर पढ़े जिससे आप पूरी post को ठीक से समझ सके...

महाभारत युद्ध के 5 बड़े कारण

Table Of Content


महाभारत युद्ध के कारण क्या  थे ?

  1.      धृतराष्ट का पुत्र मोह
  2.      दुर्योधन की महत्वकांक्षा
  3.      भीष्म और द्रोण का मौन
  4.      कर्ण का साथ
  5.      कृष्ण के प्रस्ताव को न मानना



1.  धृतराष्ट् का पुत्र मोह


   वैसे तो हस्तिनापुर का उत्तराधिकारी बड़ा पुत्र होने के नाते धृतराष्ट् था लेकिन वो जन्म से अंधे थे..इस कारण जब भीष्म उन्हें राजा बनाना चाहते तब विदुर ने इसे निति के विरुद्ध बताकर पांडू को राजा बनाने का परामर्श दिया... इस कारण पांडु हस्तिनापुर के राजा बन गये ... और उस दिन से ही धृतराष्ट् के मन में कुंठा घर कर गई.. जब दुर्योधन का जन्म हुआ तो वो उसे भावी राजा के रूप में देखने  लगा... उन्हें अपने पुत्र से बहुत लगाव था वे येनकेन प्रकारेण दुर्योधन को राजा बनाना चाहते थे... इसलिए वे दुर्योधन की हर अनुचित मांगो को भी मान लेते थे...

धृतराष्ट् पुत्र मोह में इतने अंधे हो गये थे की उन्हें अपने पुत्र की बड़ी बड़ी गलतियाँ भी सही लगती थी... वे आँखों से अंधे थे तब तक तो कई ज्यादा नुकसान नहीं था परन्तु पुत्र मोह में अंधे होकर उन्होंने महाभारत के युद्ध को न्योता दे दिया..

पांडवों के वारणावत जाने का प्रस्ताव दुर्योधन लाया था और विदुर इसके विरुद्ध में था फिर भी वो पुत्र मोह में मना नहीं कर पाए और दुर्योधन के कुकर्म में अप्रत्यक्ष रूप से साथ दिया.. द्युत का निमन्त्रण भी धृतराष्ट् ने ही दिया था और वो जानता था की शकुनी कुटिल चाले चलेगा फिर भी पुत्र मोह में वे चुप रहे... द्रोपदी वस्त्रहरण के समय भी राजा होकर भी चुप रहे क्योंकि यह उसके प्रिय पुत्र की इच्छा के अनुसार हो रहा था..

droupdi
sanjiv thakur


इस प्रकार उन्होंने अपने पुत्र मोह में दुर्योधन की हर अनुचित गतिविधि में अप्रत्यक्ष रूप से साथ दिया जो की महाभारत युद्ध का कारण बना.. धृतराष्ट् पांडवों के ज्येष्ठ पिताश्री थे इस लिहाज से भी पांडवों का ख्याल रखना चाहिए परन्तु उन्होंने राज्य के विभाजन के समय भी अपने पुत्र मोह में हस्तिनापुर दुर्योधन को दे दिया और उजड़ा इलाका पांडवो को दे दिया...



2.  दुर्योधन की महत्वकांक्षा और शकुनी का साथ


    कौरवों में दुर्योधन सबसे बडा  था.. बचपन से ही उसे मामा शकुनी का साथ मिला .. इस कारण बचपन से ही दुर्योधन के मन में महत्वकांक्षा घर कर गई.. शकुनी ने इस आग को लगाने और उसमे निरंतर घी डालने का काम किया... शकुनी गांधारी का भाई था और दुर्योधन का मामा लगता था... शकुनी अपनी बहिन का विवाह एक अंधे व्यक्ति के साथ हो जाने से नाराज था और इसका बदला वो हस्तिनापुर से लेना चाहता था....

इस कारण उसने दुर्योधन की महत्वकांक्षा को बढ़ाने का काम किया... वो बचपन से ही दुर्योधन को पांडवों के खिलाफ भडकाने लगा था जिससे दुर्योधन के मन में पांडवों से नफरत हो गई थी... शकुनी ने ही लाक्षागृह  , द्युत आदि कुटिल चले चली थी.. वो तो हमेशा से ही पांडवो और कौरवों का विनाश चाहता था.. इसलिए उसने ही महाभारत युद्ध की नीव में पत्थर रखने कला काम किया...

दुर्योधन अपनी महत्वकांक्षा के कारण उचित-अनुचित का पता करने में नाकाम रहा.. वो सब कुछ पाना चाहता था.. जब राज्य का बंटवारा हुआ तब भी वो यह सोचता था की आधा राज्य उसके हाथो से निकल गया लेकिन वास्तविकता तो यह थी की आधा राज्य उसे मिला था...

इस कारण उसने उस आधे राज्यं को पाने के लिए द्युत का आयोजन किया और उसमें सारी मर्यादाओं को ताक में रखते हुए अपनी असभ्यता का परिचय दिया और पांडवो को कभी न भरने वाला घाव दे दियब .. जिससे भरने के लिए या यूँ कहे की अपने इस अपमान के बदले के लिए पांडव 13 वर्ष तक तपते रहे और दुर्योधन की इस महत्वकांक्षा ने महाभारत युद्ध के द्वार को खोल दिया...


महाभारत का युद्ध क्यों हुआ?

3. भीष्म और द्रोणाचार्य का मौन रहना


    भीष्म व द्रोणाचार्य महाभारत में दो अद्भुत योद्धा थे..दोनों के पास शक्ति , ज्ञान की कोई कमी नहीं थी.. भीष्म तो अजेय थे और इस कारण हस्तिनापुर एक शक्तिशाली राष्ट्र बन चूका था..

लेकिन इन दोनों को उचित समय पर मौन रहना हस्तिनापुर के लिए घातक साबित हुआ और परिणाम के रूप में भयानक युद्ध सामने आया..  जब द्रौपदी वस्त्रहरण हो रहा था तब भी यह दोनों वहां पर थे लेकिन चुप थे... यही चुपी भारत वर्ष को महंगी पड गई... यदि उस समय ये दोनों बोले होते तो मजाल किसीकी जो उनके सामने बोलने की हिम्मत करते परन्तु हस्तिनापुर सिंहासन से बंधे रहने की प्रतिज्ञा करने वाले भीष्म और गुरु द्रोण मौन ही रहे...

दोनों का मौन रहने का कारण था की वे हस्तिनापुर से बंधे थे और जो हस्तिनापुर का नरेश आदेश देते उसका पालन करना यह अपना धर्म मानते थे... और ये बात दुर्योधन भी जानता था की ये दोनों उसे छोडकर जाने वाले नहीं है यदि युद्ध हुआ तो ये उसके ही पक्ष में युद्ध लड़ेंगे जिससे उसकी विजय तो आसानी से हो जाएगी ...

इस कारण उनको अपने पक्ष में पाकर दुर्योधन युद्ध को उतारू था की जब ये दोनों उसके साथ है तो भला किस बात की चिंता... भीष्म और द्रोण उस वक्त मौन न रहकर कुछ बोले होते और दुर्योधन का विरोध किया होता तो महाभारत का युद्ध कदाचित इतना भयंकर नहीं होता...



 

4. कर्ण का दुर्योधन का मित्र होना


  यूँ तो कर्ण महारथी था .. वो उच्च कोटि का धनुर्धर था.. वो दानवीर भी था.. लेकिन इन सभी गुणों के बावजूद उसने दुर्योधन का साथ  दिया... और उसी के बलबूते दुर्योधन अर्जुन को चुनौती देता था.. दुर्योधन कर्ण को अपना मित्र मानता था लेकिन कर्ण उसे अपना मित्र न मानकर मालिक मानता था .. और उसके हर अनुचित काम में साथ देता था..

यदि कर्ण दुर्योधन को सही सलाह देता और उसे अनुचित कार्य करने से रोकता तो वो वास्तव में मित्रता के धर्म को निभाता लेकिन उसने तो सिर्फ उसकी हाँ में हाँ ही मिलाया और उसे भडकाने का काम किया..

जब भीष्म, द्रोणाचार्य और कृपाचार्य अर्जुन की शक्ति को बताकर दुर्योधन को सावधान करते तब तब कर्ण उससे कहता की अर्जुन से वो अकेल निपट लेगा वो अर्जुन को लेकर चिंता न करे .. जिससे दुर्योधन लगातार गलत मार्ग पर जाने लगा..

कर्ण दुर्योधन को अपना मालिक मानता था इस कारण जब जब दुर्योधन ने जो कहा उसने वो किया कभी भी दुर्योधन की बात नहीं काटी जिससे महाभारत का युद्ध हो गया.. यदि कर्ण उसे सावधान करता और अपने व्यक्तिगत दुश्मनी को भुलाकर यदि वो सही सलाह देता तो कुछ और ही होता...

कर्ण ने स्वयम को अर्जुन से अच्छा साबित करने के लिए महाभारत जेसे युद्ध को न्योता दे दिया और अपने मित्र को भी इसके लिए हमेशा उकसाते रहे..



related

5. कृष्ण के प्रस्ताव को ठुकराना


   ऊपर जितने भी कारण लिखे है उसमें से यह सबसे महत्वपूर्ण कारण है क्योंकि यदि इस प्रस्ताव को मान लिया होता तो महाभारत का युद्ध नहीं होता..
जब पांडवों ने 13 वर्ष का वनवास पूर्ण कर लिया तब उन्होंने अपने राज्य को पुन: माँगा परन्तु दुर्योधन ने उसे देने से इंकार कर दिया.. ऐसी स्थिति में युद्ध ही एकमात्र विकल्प बचा था.. तब भगवान इस होने वाले विनाश से देश को बचाने और सब के कल्याण हेतु शांति दूत बनकर हस्तिनापुर गये...

उन्होंने वहां पर कहा कि ‘पांडवों ने अपने वचन और नियम के अनुसार 12 वर्ष का वनवास और एक वर्ष का अज्ञातवास पूर्ण कर लिया है.. अत: अब उन्हें उनका राज्य वापिस दे दिया जाए...’ लेकिन दुर्योधन ने राज्य देने से मन कर दिया  और कहा की ‘यदि आपके पास कोई दूसरा प्रस्ताव हो तो बताओं.’

तब भगवान ने पांडवों के लिए सिर्फ पांच गांवों की मांग की और कहा की आप पांच गाँव ही दे दो पांडव इन 5 गाँव से ही संतुष्ट हो जाएँगे....लेकिन दुयोधन ने कहा कि ‘ पांच गाँव क्या? मैं पांडवों को सुई की नोक के बराबर जमीन भी नहीं दूंगा.”

और उसने कृष्ण को बंधी बनाने का प्रयास किया... तब ही निश्चित हो गया की अब तो युद्ध ही होगा..
यदि युद्ध का प्रमुख कारण माने तो इस प्रस्ताव को न मानना ही है.. यदि दुर्योधन पांडवों को पञ्च गाँव दे देता तो शायद युद्ध नहीं होता...

लेकिन जो होना होता है वो तो होकर ही रहता है हम तो सिर्फ प्रयास ही कर सकते है.. और जो हो गया वो तो हो गया अब केवल यही कह सकते है की यदि ऐसा न होता तो यह नहीं होता... लेकिन भगवान कृष्ण ने Geeta में अर्जुन को समझाते हुए कहा है नकी “हमे सिर्फ कर्म पर ध्यान देना चाहिए उससे मिलने वाले फल पर नहीं.”

इसी प्रकार जिसने जैसा कर्म किया उसे वैसा ही फल मिल गया...


related
    


दोस्तों आपको हमारा यह Article पसंद आया हो तो अपने दोस्तों के साथ शेयर जरुर करे और यदि आपका कोई सुझाव हो तो भी कमेंट बॉक्स में जरुर रखे..

हमारी नई post को अपने email पर पाने के लिए हमारा free email subscription जरुर ले.. आप निचे दी गये फॉर्म में अपनी ईमेल id डालकर सब्सक्रिप्शन ले सकते है..

8 comments:

  1. सही कहा, इनसे हम बहुत सीख सकते हैं शानदार लेख

    ReplyDelete
  2. बहुत ही बढ़िया जानकारी शेयर किया है आपने

    ReplyDelete
  3. बहुत ही कमाल का पोस्ट लिखा है आपने

    ReplyDelete
  4. I read a few of your other posts. Keep up the good work. Looking forward to reading more from you down the road!

    ReplyDelete
  5. Thanks for to sharing infomative knowledge

    ReplyDelete
    Replies
    1. < a hef="https://crystaivf.com/best-ivf-centre-pune" titile="ivf centre in pune">

      Delete